a tribute to Poet of the East Allama Muhammad Iqbal on his birthday
Khird-Mandon Se Kya Poochon Keh Meri Ibteda Kia Ha
Keh Main Is Fikr Mein Rehta Hon Meri Inteha Kia Ha
Khudi Ko Kar Bukland Itna Keh Har Taqdeer Se Pehly
Khuda Bande Se Khud Poochhe Bata Teri Raza Kia Ha
Muqam-e-Guftago Kia Ha Agar Main Kemiya-Gar Hon
Yahi Soz-e-Nafas Ha Aur Meri Kemiya Kia Ha
Nazar Aaiin Mujhe Taqdeer Ki Gahraiyan Is Mein
Na Poochh Ay Humnasheen Mujh Se Woh Chashm-e-Surma-sa Kia Ha
Agar Hota Woh Majzoob-e-Farangi Is Zamane Mein
Tou IQBAL Usko Samjhata Maqam-e-Kibriya Kia Ha
Nawa-e-Subah-Gahi Ne Jigar Khoon Kar Diya Mera
Khudaya Jis Khata Ki Ye Saza Ha Woh Khata Kia Ha
ख़िर्द-मंदों से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या है
कि मैं इस फ़िक्र में रहता हूँ मेरी इंतिहा क्या है
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है
मक़ाम-ए-गुफ़्तुगू क्या है अगर मैं कीमिया-गर हूँ
यही सोज़-ए-नफ़स है और मेरी कीमिया क्या है
नज़र आईं मुझे तक़दीर की गहराइयाँ इस में
न पूछ ऐ हम-नशीं मुझ से वो चश्म-ए-सुर्मा-सा क्या है
अगर होता वो 'मजज़ूब'-ए-फ़रंगी इस ज़माने में
तो 'इक़बाल' उस को समझाता मक़ाम-ए-किबरिया क्या है
नवा-ए-सुब्ह-गाही ने जिगर ख़ूँ कर दिया मेरा
ख़ुदाया जिस ख़ता की ये सज़ा है वो ख़ता क्या है
Keh Main Is Fikr Mein Rehta Hon Meri Inteha Kia Ha
Khudi Ko Kar Bukland Itna Keh Har Taqdeer Se Pehly
Khuda Bande Se Khud Poochhe Bata Teri Raza Kia Ha
Muqam-e-Guftago Kia Ha Agar Main Kemiya-Gar Hon
Yahi Soz-e-Nafas Ha Aur Meri Kemiya Kia Ha
Nazar Aaiin Mujhe Taqdeer Ki Gahraiyan Is Mein
Na Poochh Ay Humnasheen Mujh Se Woh Chashm-e-Surma-sa Kia Ha
Agar Hota Woh Majzoob-e-Farangi Is Zamane Mein
Tou IQBAL Usko Samjhata Maqam-e-Kibriya Kia Ha
Nawa-e-Subah-Gahi Ne Jigar Khoon Kar Diya Mera
Khudaya Jis Khata Ki Ye Saza Ha Woh Khata Kia Ha
ख़िर्द-मंदों से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या है
कि मैं इस फ़िक्र में रहता हूँ मेरी इंतिहा क्या है
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है
मक़ाम-ए-गुफ़्तुगू क्या है अगर मैं कीमिया-गर हूँ
यही सोज़-ए-नफ़स है और मेरी कीमिया क्या है
नज़र आईं मुझे तक़दीर की गहराइयाँ इस में
न पूछ ऐ हम-नशीं मुझ से वो चश्म-ए-सुर्मा-सा क्या है
अगर होता वो 'मजज़ूब'-ए-फ़रंगी इस ज़माने में
तो 'इक़बाल' उस को समझाता मक़ाम-ए-किबरिया क्या है
नवा-ए-सुब्ह-गाही ने जिगर ख़ूँ कर दिया मेरा
ख़ुदाया जिस ख़ता की ये सज़ा है वो ख़ता क्या है
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